Thursday, March 30, 2006

Tanhayi



















ये तनहाई एक बार,
मुझे ये तो बता,
क्यों तुझको मेरी,
याद इतनी आती है.
ऐसी क्या ख़ासियत

है जो मुझमे, जो

मूज़े ही पता नही, जो

तुजको इतना बाहती है.

हर कोई छोड़ दिया
मेरा साथ,
बिताके कुछ लम्हे,
बनके रहे सिर्फ़
मेरे लिए कुछ यादे.
बीतते हुवे वक़्त के साथ.

इस मोड पे आ
पहुँचे है
हम जिंदगी के,
जहा यादे भी
डरते है, मूह
मोड़ लेते है हुम्से,
सोच लेता हू
कुछ पलके लिए काश
वो तो हमे सताते.
उलझ रहे खुदसे,
काश और लेकिन
के बिचमे.
वो काश जो हमेशा
के लिए काश ही
रहा गया.
लेकिन तो कभी
सच्चाई का सामना
ही ना कर पाया.

फिर किस बात की
शिकायत हो सकती
है तुमसे,
सोच लेते है की
हम तूमे ही
अपनाए.
फिर किस बतकी
गम की हम
तनहा रहते है.
इतना तो विस्वास
है हमे, की तुम जिंदगी
भर साथ तो देते हो.

4 comments:

harsha said...

Thanks,

Regards,

Harsha

harsha said...

Thanks,

Regards,

Harsha

Anonymous said...

its the most beautiful poem u hv written lekin in tanhayi me bhi ke gehra raz hota hai bas use mehsus karte jao.akbhi in tanhayi me hame bhi yaad kar liya karo na.

shruti

ಹರ್ಷಾ said...

shru,

Ye meri sabse pyari kavita hai jo mujhe tanhayime bhi khush rakhnewali eak ehasas hai.......
Jo mujhe aapne aapse baat karnekeliye maajboor karti hai,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,


Harsha